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इसकी रचना महान कवि कालिदास जी ने किया है| यह एक नाटक है और बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय है| इसको पहले संस्कृत में लिखा गया था और फिर बाद में इसको इंग्लिश में अनुवाद किया गया था| इस कहानी महाभारत से भी जुड़ी है, इस पुरे ड्रामा को पढ़ने के बाद आपको समझ आएगी|
अभिज्ञान शाकुन्तलम् का अर्थ होता है शकुन्तला को पहचानना| यह नाटक का शुरुवात होती है हस्तिनापुर के एक दुस्यनता नामक राजा से| जब राजा एक बार धनुष बाण के साथ शिकार के लिए जाते है तभी एक साधू बाबा उसको रोकता है, जिनका नाम है वैखानस| साधू बाबा कहते है कि इस हिरन को मत मारों क्योंकि यह हिरन कंव ऋषि का क्षेत्र का है और राजा इस हिरन को छोर देते है| यह देखकर साधू बाबा उसको आश्रम में कंव ऋषि से मिलने के लिए कहता है|
जब वह कंव ऋषि से मिलने जाता है तो वह नहीं मिलते है, लेकिन उसकी पुत्री शकुंतला को देखते है और उससे प्रेम हो जाते है| राजा देखते है कि वह अपने सहेलियों के साथ पेड़ो में पानी डाल रही थी और महाराजा को पेड़ से अत्यंत ही प्रेम था| उसी समय सकुंतला के पास एक मधुमक्खी आ जाती है और देख कर महारज को जलन होती है|
Abhigyan Shakuntalam PDF in Hindi
जब महाराज उन सबसे मिलते है और शकुंतला से पूछते है कि आप कौन है? तो शकुंतला कहती है कि मैं कंव ऋषि की पुत्री हूँ| यह सुनकर महाराज उनसे कहते है कि कंव ऋषि तो ब्रम्हचारी है तो उसका कैसे कोई संतान हो सकता है? तब शकुंतला कहती है कि कंव ऋषि ने मुझे सिर्फ पाला- पोषा है| दरसल शकुंतला मेनका और विश्वामित्र के पुत्री है| मेनका जब स्वर्ग जा रही थी तब उन्होंने अपने पुती को ऋषि कंव को दे दिया था|
महाराजा शकुंतला को एक अंगूठी देके अपने राजमहल में आ जाते है और उसी के बारे में रात भर सोचते रहते है| अगले दिन जब वह आश्रम में जाते है तो कुछ बुरे लुटेरे आश्रम को बर्बाद करने में लगा था| यह देख शकुंतला ने महाराज दुस्यनता को आश्रम में कुछ दिन रुकने के लिए कहा और महाराज भी इसके लिए पहले से ही तैयार थे| कहीं न कहीं शकुंतला के मन में महाराज के लिए कुछ चल रहा था| जब यह बात अपनी सहेलियों को बताई तो उसकी सहेलियाँ महारज दुस्यनता के लिए प्रेम पत्र लिखने के लिए कहा|
जब इस बात का पता राजा दुस्यनता को चलता है तो वह शकुंतला को गले लगा लेता है और कंव ऋषि को बिना बतायें दोनों विवाह कर लेते है| राजा दुस्यनता को राज काम के कारण आश्रम छोड़कर जाना पड़ता हैऔर शकुंतला से कहकर जाते है कि जब ऋषि कंव आ जायेंगे तो उनसे बात करके आपको राजमहल लेके चले जायेंगे|
इतना कुछ होने के बाद शकुंतला को अब कोई भी कम में मन नहीं लगता था| वह सिर्फ महाराज दुस्यनता के बारे में ही सोचते रहती थी, जिस कारण से आश्रम में आये हुए लोगों का सेवा सही से नहीं कर पा सा रही थी| एक दिन आश्रम में गुरु दुर्वासा आते है और शाकुंतल के इस व्यवहार को देखकर उसे श्राप देते है और कहते है तुम जिसके बारे में सोच रहे हो, वह तुम्हें पूरी तरह से भुला देगा| यह सुनकर शकुंतला क्षमा मांगती है, तब गुरु दुर्भासा कहते है कि यदि तुम्हारे पास उसकी कोई चीज है तो उसे दीखते ही सब याद आ जायेगा|
इस श्राप का असर दिखने लगा था| महीने बीत जाते है और राजा दुस्यनता की ओर से कोई भी पत्र नहीं आता है| जब कंव ऋषि आश्रम आते है और इस बात का पता चलता है कि शकुंतला का विवाह महारज से हो गया है तब कंव ऋषि अपनी पुत्री शकुंतला को महाराज अर्थात् अपने पति के पास जाने के लिए बोलते है कि एक शादीशुदा बेटी का घर उसके पति के यहाँ ही होता है और उसे बहुत सारी शुभकामनाएं के साथ विदाह किया जाता है|
जब वह महाराजा के पास नदीं पार करके जाती है तो उसकी अंगूठी नदी में गिर जाती है और उसे एक मछली निगल लेती है| जब वह महाराज के पास जाती है तो शकुंतला को पहचानने से मना कर देती है यह देखकर उसे बहुत बुरा लगता है| और धरती माँ से कहती है कि उसे गायब कर दे और बदल गरजने लगते है, फिर वह गायब हो जाती है| एक दिन सिपाहियों द्वारा एक मछुआरा को पकरकर लाया जाता है| उस पर आरोप अहता है कि वह राजा का अंगूठी चुराया है जब उस अंगूठो को महाराजा देखते है तो पीछे का पूरा चीज याद आ जाता है और शकुंतला को ढूंडने लगते है, लेकिन उसे नहीं मितला है|
एक दिन जब राजा दुस्यनता जंगल से जाते है तो वह देखते है कि एक बच्चा एक शेर के साथ खेल रहा है, उसे देखकर राजा को अपना सा लगता है| उस बच्चे को श्राप रहता है कि जब इसका अपना पिता इसे छुएगा तो यह साँप बन जायेगा| और महाराजा के उस बच्चे को छुते ही वह बच्चा साँप बन जाता है| यह देखकर शाकुंतल आती है और राजा दुस्यनता दोनों को पहचान जाती है और सब राजमहल चले जाते है|
यदि आप इसके पीडीऍफ़ को डाउनलोड करना कहते है तो नीचे दिए गए डाउनलोड बटन की मदत से फ्री में डाउनलोड कर सकते है|
Abhigyan Shakuntalam PDF: Overview
PDF Name | Abhigyan Shakuntalam PDF |
Language | Hindi & Sanskrit |
No. of Pages | 564 Pages |
Size | 300 MB |
Quality | Excellent |
Download Abhigyan Shakuntalam PDF
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