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बजरंग बाण को एक घताक अस्त्र की भाति बताया जाता है, इसका उपयोग हर समय नहीं किया जाता है और इसका निमत पाठ की भी माना ही की गई है| इसका पाठ विशेष परिस्थितियों में किया जाता है जब आपका स्वास्थ्य बहुत हो, जब कोई घोर बिपत्ति आ गई हो, शत्रु का भयानक भय आपको शता रहा हो या कोई भी ऐसा जो असाध्य हो, उस समय बजरंग बाण का पाठ किया जता है|
बजरंग बाण की रचना तुलसीदास जी ने की है| ऐसा कहा जाता है कि जब तुलसीदास जी के ऊपर किसी घोर तांत्रिक ने क्रिया कर दी थी, जिसके कारण से उसके पुरे शरीर में फफोले उठ गए थे| जब बहुत सारा इलाज कराने के बाद भी आराम नहीं पड़ा, तब तुलसीदास जी ने बजरंग बाण की रचना की थी| और ऐसा कहा जाता है कि जो बीमारी थी वह तिन दिन के अन्दर समाप्त हो गई थी|
Bajrang Baan Path PDF
शत्रुओं से यदि कोई निश्चित रूप से भय है या तांत्रिक क्रिया की गई है, उस समय बजरंग बाण बहुत शक्तिशाली और घातक होता है| इसके प्रोयोग के लिए कुछ सावधानी है, हर जगह और हर कभी इसका पाठ नहीं करनी चाहिए|
शास्त्रों के अनुसार महिलाओं को बजरंग बाण का पाठ नहीं करना चाहिए, परंतु वह हनुमान जी की मूर्ति या चित्र के सामने हनुमान चालीसा का पाठ को पढ़ सकती है|
हनुमान जी का यह जो बजरंग बाण है यह एक कष्ट निवारक है, विपत्ति का निवारक है, अचूक है और बिपत्ति है समय इसका पाठ अवश्य करिए, हनुमानजी आपकी सहायता जरुर करेंगे|
बजरंग बाण दोहा/ Bajrang Baan Doha
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
अर्थ:- जिनके मन में हनुमान जी के प्रति सच्चा प्रेम है, मन में आदर है और जो सम्मान पूर्वक हनुमान जी से निवेदन करते है| ऐसे लोगों के सभी कार्य हनुमान जी दिव्यता से पूर्ण कर देते है|
बजरंग बाण चौपाई/ Bajrang Baan Choupai
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
अर्थ:- जय हो हनुमान की, जो हमेशा संतो का हित करते है, सुन लीजिये प्रभु हमारी बिनती| देर ना कीजिये, जल्दी से हमारी विपत्ति को टाल कर हमें महाशुख दीजिये|
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥
अर्थ:- जिस प्रकार आपने छलांग मारके समुद्र को पार कर लिया था, जिस तरह आप सुरसा के बदन में घुसकर रूप को विस्तार किये थे, उसी तरह आप अपने रूप को विस्तार कर हमारे विपत्ति को दूर करें| हनुमान जी जब लंका में प्रवेश कर रहे थे तो उसे लंकिनी द्वारा रोका जाता है, और उसे कहा जाता है कि तुम बिना पूछे लंका में किधर प्रवेश कर रहे हों, तब हनुमान जी ने लंकिनी को मुक्का मार कर स्वर्ग लोक सिधार दिया था|
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥
अर्थ:- जब हनुमान जी लंका में गए थे, तब उन्होंने बिभीषण से मिले थे, और वह भी राम का भक्त था| इसलिए उसे सुख प्राप्ति होता है| जब हनुमानजी लंका के अशोक बाटिका में पहुचे तो वह सीता माता से मिले और सीता माता का समाचार श्री प्रभु तक पहुचायें| ये जो महान कार्य है सिर्फ हनुमान जी ने ही किया था, इसलिए उसे परम पद अर्थात् सर्वोच्च पद दिया गया था|
सीता माता से मिलने के बाद अशोक बाटिका को जानबूझ कर उजार फेका| हनुमान जी आपकी जो मार है वह तलवार की तरह है, जिसे भी आप मारते है, वह सीधे यम के पास चले जाते है|
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अर्थ:- अक्षय कुमार रावण का पुत्र था, और जब हनुमान जी अशोक बाटिका में उत्पात मचा रहे थे, उसमें बड़े-बड़े योद्धा भेजें थे, उन्होंने सबका संघार कर डाला था| फिर अक्षय कुमार महायोद्धा था और उसे भेजा गया हनुमानजी से लड़ने, लेकिन हनुमान जी क्या ही बलशाली थे, उन्होंने अक्षय कुमार का पैर पकरकर घुमाके मार डाला था| उन्होंने हनुमान जी के पूंछ पर कपड़ा लपेटकर उसमें आग लगा दी, और उसी आग से उन्होंने पूरी लंका को ही जला डाला|
घास-पूस के समान लंका पूरी जल गई और देवताओं के नगर में, आकाश में जय-जय हनुमान जी की ध्वनि हुई|
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
अर्थ:- अब किस कारण से आप देर कर रहे है स्वामी| मेरे ह्रदय में कौन से विपत्ति है उसे आप जानते हों, कृपा करें उसे जल्दी से दूर करें| युद्ध के समय जब मेघनाथ ने लक्ष्मणजी को बाण मरी थी तब आपने लक्ष्मण जी की जान बचाए थे| उसी प्रकार जल्दी से सारे दुःख को नष्ट कर दीजिये|
जय हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
अर्थ:- आप बल के समुद्र है अर्थात् आपके अन्दर अथाह बल है जय हो आपकी| और देवताओं के समूह के समर्थ चतुर योद्धा भी है| है हनुमान महाराज, आप मेरे शत्रु का नाश करिए|
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
अर्थ:- ॐ परम पिता अर्थात् इस सृष्टी के रचयिता उनके लिए बोला जाता है| आप हमारे शत्रु के सर को धर से अलग कर दीजिये| है अंजनी पुत्र बलशाली आपकी जय हो| आप तो शंकर जी के अंश है और वीर है|
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
अर्थ:- हनुमान जी शरीर बहुत विक्राल है जोकि मृत्यु को उसके खानदान समेत खत्म करने की शक्ति है| प्रभु राम का हमेशा का सेवक भी है| भुत, प्रेत एवं पिसाच जो रात को चलते है और रात को ही बलशाली होते है| हनुमानजी इन सारी शक्ति को नष्ट कर सकते है|
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
अर्थ:- इन्हें मारिये तो ही आपको श्री राम जी की सपत है| हे हनुमान जी आप अपने नाम की मर्यादा रखिये|
प्रभु की सपत लेके या सौगंध लेके जो आप करोगे, वो सत्य होंगा| आप राम चंद्र जी के दूत है और आप हमारे जो शत्रु है, उनको दोड़कर के मार डालिए|
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
अर्थ:- आपका जो बल है वह अथाह है| इतना सब होने के बाद भी आपके भक्त दुःख पाते है, किस अपराध के कारण|
आपका पूजा कैसे की जाती है? कैसे जाप किया जाता है? कैसे नाम उच्चरण किया जाता है? मुझे कुछ नही आता| में आपका दास हु, सेवक हु|
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
अर्थ:- में वन में रहू, उपवन में रहू या घर में रहू में डरता नहीं हु, में आपके बल के सहारे हु, में डरता नहीं|
माता सीता ने आपको प्रभु का दास कहा है, ताकि उनकी सपत देर न करें|
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
अर्थ:- आकाश में जय जय कार की ध्वनि होती है| आपका स्मरण करने से बड़ी से बड़ी असहनीय दुःख का भी नाश हो जाता है|
में आपके पैर पकड़ता हु और हाथ जोड़कर मनाता हु आपको, इस समय अब में किससे गुहार लगाऊ आपके अलावा, अब जो भी हो आप ही हो और आप ही को ये सारे दोष दूर करने होंगे|
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
अर्थ:- उठिये-उठिये आपको राम जी की कसम है, पैर पकड़ता हु और हाथ जोड़कर मनाता हु|
आप वायु के समान चलते है, एलिए मेरे दोष को दूर करें|
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
अर्थ:- हनुमान जी आपसे बिनती है हमरे जो दुःख है उन सभी को हाक दीजिये| और जब हनुमानजी हाकते है तो शत्रु डर जाते है| अपने दास के विपत्ति को दल्दी से दूर करें ताकि हमारा जीवन आनंद मई हो|
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
अर्थ:- यह बजरंग बाण जिसको भी मरोगे, फिर उसको कौन बचा सकता है|
पाठ करे बजरंग बाण की, उनकी जीवन की हनुमानजी उनकी प्राण की रक्षा जरुर करेंगे|
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥
अर्थ:- यह बजरंग बन की जो जाप करता है, उनको ऊपर भुत, प्रेत और तांत्रिक वधाए सब खत्म हो जाती है|
जो हनुमान जी के नाम से धूप जलते है और जो इस बजरंग बाण का पाठ करते है, उनके सरीर में कोई भी कलेश नहीं रहता|
दोहा:
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥
अर्थ:- जिनके ह्रदय में हनुमानजी के प्रति आदर है, विश्वास है, जो हनुमान जी के शरण में चले जाते है और जो बजरंग बाण की पाठ करते है, हनुमान जी का स्तुति गेट है, उनका ध्यान करते है|
उनकी सब बाधाये हनुमान जी हर लेते है और सभी कम सफल कर देते है|
Bajrang Baan Path PDF: Overview
PDF Name | Bajrang Baan Path PDF |
Language | Hindi |
No. of Pages | 4 Pages |
Size | 3 MB |
Category | Religious |
Quality | Excellent |
Download Bajrang Baan Path PDF
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